नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूप (नवदुर्गा)

 नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूप (नवदुर्गा) — 


नवरात्रि में नौ रातों तक माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। हर रूप का विशेष महत्व और शक्ति होती है:


1. शैलपुत्री (पहला दिन)

पर्वतराज हिमालय की पुत्री।

प्रतीक: शक्ति और भक्ति का आरंभ।

वाहन: बैल (नंदी)।

सम्पूर्ण जड़ पदार्थ अथवा अपरा प्रकृति से उत्पन्न यह भगवती का पहला स्वरूप हैं। मिट्टी(पत्थर), जल, वायु, अग्नि व आकाश इन पंच तत्वों पर ही निर्भर रहने वाले जीव शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ अर्थात कण-कण में परमात्मा के प्रकटीकरण का अनुभव करना। योनि चक्र के तहत घास, शैवाल, काई, पौधे इत्यादि शैलपुत्री हैं।


2. ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन)

तपस्विनी रूप, कठोर तप करने वाली।

प्रतीक: ज्ञान, तप और संयम।

हाथों में कमंडल और रुद्राक्ष।

जड़(अपरा) में ज्ञान(परा) का प्रस्फुरण के पश्चात चेतना का वृहत संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। यह जड़ चेतन का जटिल संयोग है। प्रत्येक वृक्ष में इसे देख सकते हैं। सैंकड़ों वर्षों तक पीपल और बरगद जैसे अनेक बड़े वृक्ष ब्रह्मचर्य धारण करने के स्वरूप में ही स्थित होते है।


3. चंद्रघंटा (तीसरा दिन)

मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करती हैं।

प्रतीक: साहस और शांति।

वाहन: सिंह।

भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में आवाज (वाणी) तथा दृश्य ग्रहण व प्रकट करने की क्षमता का प्रादुर्भाव होता है। जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।



4. कूष्मांडा (चौथा दिन)

ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली शक्ति।

प्रतीक: सृजन और ऊर्जा।

आठ भुजाएँ और सिंह पर सवार।

कूष्माण्डा- अर्थात अण्डे को धारण करने वाली; स्त्री और पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है। मनुष्य योनि में स्त्री और पुरुष के मध्य इक्षण के समय मंद हंसी(कूष्माण्डा देवी का स्व भाव) के परिणाम स्वरूप जो आकर्षण और प्रेम का भाव उठता है वो भगवती की ही शक्ति है। इनके प्रभाव को समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।


5. स्कंदमाता (पांचवां दिन)

भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता।

प्रतीक: ममता और शक्ति।

वाहन: सिंह।

स्कन्दमाता- पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।


6. कात्यायनी (छठा दिन)

ऋषि कात्यायन की पुत्री रूप।

प्रतीक: बहादुरी और रक्षक शक्ति।

वाहन: सिंह।

कात्यायनी- के रूप में वही भगवती माता-पिता की कन्या हैं। यह देवी का छठा स्वरुप है।


7. कालरात्रि (सातवां दिन)

काला स्वरूप, राक्षसों का नाश करने वाली।

प्रतीक: अंधकार का अंत और भय का नाश।

वाहन: गधा।

देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, अपरा और परा विभक्त हो जातें है। मन की मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है। भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप परा प्रकृति होने के कारण सुलभ नहीं है।


8. महागौरी (आठवां दिन)

शांति, करुणा और स्नेह की देवी।

प्रतीक: शुद्धता और मोक्ष।

वाहन: वृषभ।

भगवती का आठवाँ स्वरूप महागौरी जगत की कालिख वृति न रहने के कारण गौर वर्ण का परम शुद्ध व परम पवित्र है।


9. सिद्धिदात्री (नौवां दिन)

सिद्धियाँ और ज्ञान प्रदान करने वाली देवी।

प्रतीक: सफलता और पूर्णता।

वाहन: सिंह या कमल पर विराजमान।

भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है। इसमें शक्ति स्वयं शिव हो जाती है, पार्वती स्वयं शंकर हो जाती है और राधा स्वयं कृष्ण हो जाती है। आत्मा अर्थात जीवात्मा अपने परम स्थिति में परमात्मा हो जाती है। शक्ति, पार्वती, राधा व जीवात्मा एक है। शिव, शंकर, कृष्ण व परमात्मा एक है। भगवान अर्धनारीश्वर है। सब उनमें ही ओत-प्रोत है, सबकुछ वो है, अलग कोई नही।


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